चींटी और टिड्डे:- एक समय की बात है गर्मी का मौसम था। चीटियां अपने लिए भोजन को एकत्रित कर रही थी। वह रोज खेतों में जाती और वहां से दान चुनकर अपने बिल में रखती। चींटी के बिल के सामने एक टिड्डा भी रहता था। वह रोज गाना गाता और नाचते रहता था। वह चीटियों से कहता था कि प्यारी चीटियां तुम इतनी मेहनत क्यों कर रही हो आओ हम मजे करें। चीटियां उस टिड्डे को नजर अंदाज करके अपना कार्य करती रहती हैं। वह टिड्डा उन चीटियों का मजाक उड़ाता था। इस कारण से वह चीटियां काफी परेशान हो गई थी। कुछ समय बाद सर्दियों का मौसम आया और तेज बर्फबारी होने लगी। बर्फबारी के कारण टिड्डा अपना खाना अच्छे से ढूंढ नहीं पा रहा था। जब वह खाना ढूंढने के लिए बाहर निकला तो उसने देखा कि चीटियां अपना बचाया हुआ खाना खाकर आराम से जिंदगी जी रही हैं। तब उसे अपनी बातों का पछतावा हुआ। इसके बाद चीटियों ने उसे टिड्डे की मदद की और उसे खाने के लिए कुछ अनाज दिया। सीख :-हमें नियमित रूप से मेहनत करनी चाहिए। दूसरे के बहकावे में आकर कोई भी कम नहीं उठाना चाहिए।जो आपका मजाक उड़ाते हैं। वही आपकी सफलता पर तारीफ भी करते हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत कथा:- एक समय की बात है एक पीपल का पेड़ था। जिसके नीचे एक चील और एक सियारिन रहती थी। लोगों को जीवित्पुत्रिका व्रत करते हुए देखकर उन दोनों ने भी जीवित्पुत्रिका व्रत करने की ठानी। जिस दिन यह व्रत था उसी दिन उस गांव में एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। जिसे एक वीरान स्थान पर लाया जाता है। इस मृत व्यक्ति को देखकर सियारिन अपना व्रत तोड़ देती है परंतु चील पूरी श्रद्धा से जीवित्पुत्रिका व्रत करती है। दोनों ही इस व्रत के प्रभाव से अगले जन्म में मनुष्य के रूप में पैदा होते हैं। चील अहिरावती जो एक राज्य की रानी थी और सियारिन कपूरावती इस राज्य के राजा के भाई की पत्नी थी। अहिरावती के कुल 7 बेटे थे और कपूरावती के बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे। इस बात से कपुरावती ने अहिरावती के सातों पुत्रों को मार कर और उनके सिरों को सात घड़ों में भरकर अहिरावती के पास भेज दिया। उस दिन अहिरावती ने जीवित्पुत्रिका व्रत रखा था। उसने भगवान जीमूतवाहन को याद कर सातों घडो में जल छिड़का तब सातों पुत्र जीवित हो गए। वहां कपूरावती अपनी बहन के घर से शोक समाचार आने का इंतजार कर रही थी। बहुत देर हो