राजा दशरथ अयोध्या के प्रतापी राजा थे। उनके चार पुत्र थे राम लक्ष्मण भरत और शत्रुघ्न। राजा दशरथ को अपने चारों पुत्रों से काफी लगाव था। एक दिन गुरु की आज्ञा से श्री राम और लक्ष्मण जनकपुर जाते हैं। वहां पर राजा जनक की पुत्री सीता का स्वयंवर होता है। स्वयंवर की शर्त होती है कि जो भी पुरुष शिव धनुष में प्रत्यंचा चढ़ाएगा। सीता का विवाह उसी के साथ होगा। बड़े-बड़े प्रतापी राजा इसको करने में असमर्थ हो जाते हैं। तब भगवान राम गुरु की आज्ञा से उस शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने जाते हैं। प्रत्यंचा चढ़ाने के दौरान वह धनुष भंग हो जाता है। उसके बाद सीता का विवाह राम के साथ होता है। कुछ दिनों बाद अयोध्या राज्य में अगले उत्तराधिकारी पर बात कि जाती है सब लोग राम को चुनते हैं। तभी मंथरा नाम की दासी। जो राजा दशरथ की पत्नी को कहती है कि राज सिंहासन पर आपके पुत्र भरत को बैठना चाहिए। इस बात से सहमत होकर रानी कैकई राजा दशरथ से अपने दो वरदान मांगती है। पहला राम का 14 साल का वनवास और भरत का राज्य सिंहासन। राजा दशरथ अपने वचन में बंध जाते हैं। तब पिता की आज्ञा से राम सीता और लक्ष्मण तीनों वनवास की ओर चले जाते हैं। वनवास के दौरान रावण नाम का राक्षस माता सीता को साधु के भेष में आकर अपहरण करके ले जाता है। वीर जटायु रावण को रोकने का प्रयास करता है परंतु वह वीरगति को प्राप्त होता है। जब राम और लक्ष्मण को पता चलता है कि सीता का अपहरण हो गया है तो वह सीता की खोज में निकल जाते हैं। वह वानर राज सुग्रीव और हनुमान की सहायता से लंका पर जाने के लिए पुल का निर्माण करते हैं और काफी दिन भीषण युद्ध होने के बाद रावण का वध करके अयोध्या की ओर प्रस्थान करते हैं। जब राम सीता और लक्ष्मण अयोध्या में प्रवेश कर रहे होते हैं। तो वहां पर उनका स्वागत दीप जलाकर किया जाता है। तभी से हम इस पर्व को दीपावली के नाम से जानते हैं। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
सीख:-हमें यह प्रयास करना चाहिए कि हम अपनी ज्ञान रूपी प्रकाश से अंधकार रूपी अज्ञान को दूर कर दें।