पश्चाताप से बड़ा कोई धर्म नहीं:-
एक समय की बात है एक व्यक्ति जो बार-बार अपना स्थान बदलते रहता था। वह कभी दूसरे गांव में जाता और कभी दूसरे गांव में। वह व्यक्ति एक डाकू था। दूसरे दूसरे जगह पर जाकर वह डकैती किया करता था। वह अब डकैती करके उब चुका था। एक दिन जब वह एक ब्राह्मण के यहां डकैती कर रहा था तब उसे इस बात का पछतावा हुआ कि मैं गलत काम कर रहा हूं। वह पश्चाताप करने के लिए एक अच्छे गांव में शरण लेना चाहता था और मेहनत से कमाई करना चाहता था परंतु जैसे ही लोगों को पता चलता था कि यह डाकू था। उसे कोई भी अच्छी नजर से नहीं देखता था। एक दिन वह काफी नाराज होकर जा रहा होता है। तभी उसे एक साधु दिख जाता हैं। वह डाकू उनसे पूछता है कि मैं सुधरना चाहता हूं परंतु इसमें मेरा कोई साथ नहीं दे रहा है। अब मैं क्या करूं। साधु ने कहा अब तुम्हारे पास एक ही मार्ग है तुम उन लोगों के लिए इतना अच्छा कार्य करो कि वह तुम्हारी सारी पुरानी गलतियों को माफ कर दें। उस डाकू ने ऐसा ही किया। धीरे-धीरे सभी लोगों ने उस व्यक्ति को माफ कर दिया। अब उस गांव में उसकी पहचान एक अच्छे व्यक्ति के तौर पर होने लगी। वह गांव के भलाई के लिए कुछ भी कर सकता था।
सीख:-
हम अपनी गलतियों को बदल तो नहीं सकते परंतु हम उसके बदले अच्छे काम कर सकते हैं।