धनतेरस की कहानी:-
एक समय की बात है एक सेठ था। उसके चार बेटे और चार बहू थी। एक दिन माता लक्ष्मी उस सेठ से नाराज हो गई और कहा मैं तुम्हारे घर से जा रही हूं और नुकसान यहां पर प्रवेश कर रहा है परंतु जाने से पहले मैं तुमको कुछ देना चाहती हूं। मांगो तुम क्या मांगना चाहते हो। सेठ बहुत ही समझदार व्यक्ति था। उसने कहा माता आप जा रही हैं,तो ठीक है परंतु हमारे परिवार को यह आशीर्वाद दीजिए की हम में कभी प्यार कम ना हो। उसके बाद माता सेठ के घर से चली जाती है। एक दिन सेठ की छोटी बहू खिचड़ी बना रही थी। उसके खिचड़ी बनाने समय वहां सेठ की दूसरी बहू आ जाती है। तब छोटी बहू वहां से चली जाती है। जो बहू खिचड़ी की देखभाल कर रही थी उसने बिना चक्खे खिचड़ी में नमक डाल दिया परंतु उसमें पहले से ही छोटी बहू ने नमक डाली थी। एक-एक करके यह सिलसिला सारी बहू ने दोहरा दिया। जब सेठ जी सबसे पहले खाना खाने के लिए बैठे तो खिचड़ी को खाकर उन्हें पता चल गया कि हमारे घर में नुकसान आ गया है। इसलिए वह बिना कुछ कहे खिचड़ी खत्म कर चले गए। इसके बाद उस सेठ का बड़ा बेटा आया और खिचड़ी खाई। उसके बाद उसने घर में सभी औरतों से पूछा कि पिताजी ने खाना खा लिया। सभी ने हाॅ जवाब दिया। उसने सोचा की पिता जी ने कुछ नहीं कहा तो मैं क्यों कुछ कहूं। इसी कारण वह भी खिचड़ी खाकर चुपचाप चला गया। एक के बाद एक सेठ के सभी बेटों ने खिचड़ी को खाया और चुपचाप चले गए। उसी रात सेठ को सपना आया। उसके सपने में नुकसान था। उसने कहा मैं तुम्हारे घर से जा रहा हूं। तब सेठ ने पूछा क्यों। तब नुकसान ने जवाब दिया की खिचड़ी में ज्यादा नमक होने के बावजूद किसी ने घर में झगड़ा और निराशा जाहिर नहीं की। नुकसान का पहला ही अर्थ होता है झगड़ा और दुख इसलिए मैं जा रहा हूं। जहां पर प्रेम है वहां तो मां लक्ष्मी का स्थान होता है। इसके बाद पुण: माता लक्ष्मी उस सेठ के घर पर आ गई।
सीख:-हमें जहां तक हो सके क्रोध और निराशा को अपने से दूर रखना चाहिए।