एक समय की बात है एक पीपल का पेड़ था। जिसके नीचे एक चील और एक सियारिन रहती थी। लोगों को जीवित्पुत्रिका व्रत करते हुए देखकर उन दोनों ने भी जीवित्पुत्रिका व्रत करने की ठानी। जिस दिन यह व्रत था उसी दिन उस गांव में एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। जिसे एक वीरान स्थान पर लाया जाता है। इस मृत व्यक्ति को देखकर सियारिन अपना व्रत तोड़ देती है परंतु चील पूरी श्रद्धा से जीवित्पुत्रिका व्रत करती है। दोनों ही इस व्रत के प्रभाव से अगले जन्म में मनुष्य के रूप में पैदा होते हैं। चील अहिरावती जो एक राज्य की रानी थी और सियारिन कपूरावती इस राज्य के राजा के भाई की पत्नी थी। अहिरावती के कुल 7 बेटे थे और कपूरावती के बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे। इस बात से कपुरावती ने अहिरावती के सातों पुत्रों को मार कर और उनके सिरों को सात घड़ों में भरकर अहिरावती के पास भेज दिया। उस दिन अहिरावती ने जीवित्पुत्रिका व्रत रखा था। उसने भगवान जीमूतवाहन को याद कर सातों घडो में जल छिड़का तब सातों पुत्र जीवित हो गए। वहां कपूरावती अपनी बहन के घर से शोक समाचार आने का इंतजार कर रही थी। बहुत देर होने के बाद उसने स्वयं समाचार लेने के लिए वहां चली गई। तब वह सातों पुत्रों को जीवित देखकर अचंभित रह गई। तभी वहां जीमूतवाहन भगवान प्रकट हुए और पिछले जन्म की कथा बताइ। कपूरावती अपने कर्मों से काफी लज्जित हुई और मृत्यु को प्राप्त हो गई।उसके बाद अहिरावती ने भगवान जीमूतवाहन से वर मांगा की जो भी आपका व्रत बड़ी श्रद्धा और भक्ति से करेगा। उसके पुत्रों को कभी कोई दुख ना हो। इसके बाद से यह व्रत करने की प्रथा चली।