परोपकार का फल। काम करो फल की चिंता मत करो। कहानी। paropkar ka fal

परोपकार का फल:-
एक समय की बात है घनश्याम नाम का बहुत बड़ा सेठ रहा करता था। वह बहुत ही परोपकारी व्यक्ति था और काफी यज्ञ अनुष्ठान भी करवाता था। एक दिन उसकी फैक्ट्री में आग लग जाती है और उसका व्यापार बर्बाद हो जाता है। घनश्याम सोचता है कि अब मेरे पास भोजन तक करने के पैसे नहीं है। लोगों की सलाह पर वह अपना एक यज्ञ बेचने दूसरे गांव के बड़े सेठ के पास चला जाता है। उन दिनों माना जाता था कि हम पुण्य को खरीद या बेच सकते हैं। घनश्याम जिस सेठ के पास यज्ञ को बेचने जा रहा था। उसकी पत्नी के बारे में कहा जाता है कि वह चमत्कारी है। घनश्याम की पत्नी ने चार रोटी एक कपड़े में लपेट कर घनश्याम को दे दिया। आधे रास्ते में घनश्याम ने सोचा कि मैं कुछ रोटी खाकर कुछ देर आराम कर लेता हूं। यह सोचकर वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया। वहां पर एक बहुत ही कमजोर कुत्ता आ गया और उसकी तरफ मानो ऐसे देख रहा हो की वह कुछ रोटी की मांग कर रहा है। घनश्याम ने सोचा कि मैं अपनी एक रोटी इस कुत्ते को दे देता हूं परंतु घनश्याम के एक रोटी देने के बाद भी नहीं रुका। उसने एक-एक करके अपनी चारों रोटी उस कुत्ते को दे दी और पानी पीकर अपनी मंजिल की ओर चला गया। जब वह वहां पर पहुंचा तो घनश्याम ने अपनी यज्ञ बेचने की बात सेठ की पत्नी से की। सेठ की पत्नी ने कहा मुझे तुम्हारा यज्ञ नहीं खरीदना। अगर तुम बेचना ही चाहते हो तो तुम मुझे वह पुण्य बेच दो जो तुमने कुत्ते को रोटी खिलाकर कमाया है। घनश्याम ने कहा यह मेरा पुण्य नहीं है। यह तो मेरा कर्तव्य था। यह कहकर घनश्याम अपने घर चला गया। यह सारी बातें घनश्याम ने अपनी पत्नी को बताया। उसकी पत्नी ने उसका पूरा सहयोग किया। उसी दिन जमीन में रखें एक लकड़ी के वर्गाकार टुकड़े पर उसका पैर लग गया और वह गिरते गिरते बचा। उसने सोचा कि मैं इसे अच्छे से लगा देता हूं। नहीं तो इसमें और कोई भी गिर सकता है। जैसे ही लगाने के लिए उस लकड़ी के टुकड़े को उठाया उसके नीचे बहुत बड़ा तहखाना निकला। उसमें बहुत सारे सोने के सिक्के और काफी धन था। 

सीख:-हमें अपने काम पर हमेशा भरोसा रखना चाहिए उसका फल हमें कभी ना कभी जरूर मिलता है।
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