विकास की राह:-
एक समय की बात है एक गांव में दो भाई रहा करते थे। दोनों ने ही अच्छी शिक्षा प्राप्त की थी परंतु दोनों के विचार काफी भिन्न थे। एक भाई पढ़ाई करने के बाद शहर चला गया और काफी अच्छा धन कमाने लगा परंतु दूसरा भाई इसका विरोधी था वह सोचता था कि शहरों में लोग हमारे संस्कारों को भूलते जा रहे हैं। इसलिए वह गांव में ही रहकर छोटा-मोटा व्यापार करता था। कुछ दिन सब ठीक चला जो भाई शहर में रहता था धीरे-धीरे उसका स्वास्थ्य खराब होने लगा था और गांव वाले भाई का व्यापार अच्छा नहीं चल रहा था। इस कारण वह काफी निर्धन हो गया था। यह सब उस गांव का सबसे वृद्ध व्यक्ति देख रहा था जब दोनों भाई गांव आए तो उस वृद्ध व्यक्ति ने उन दोनों भाइयों को बुलाया और कहा तुम दोनों ही गलत मार्ग पर जा रहे हो। हमारा जीवन एक वृक्ष के समान होता है जिसमें जड़ संस्कार होती है हम पर्यावरण और पृथ्वी का संतुलन बनाकर चले तो इस जीवन रूपी पेड़ काफी मजबूत हो जाएगा और जैसे पेड़ों में कुछ समय बाद उसके पुराने पत्ते पीले होकर झड़ जाते हैं और नई-नई हरे-हरे पत्ते निकलते हैं वह हमारे लिए विकास है। जब पर्यावरण और विकास का संगम होता है तभी हमारा जीवन एक स्वस्थ जीवन होता है। यह सुन कर दोनों को अपनी गलती का एहसास होता है।तब शहर वाला भाई शहर में प्रकृति को बचाने का प्रयास करता है और गांव में रहने वाला भाई गांव का विकास करता है।
सीख:-हमें पर्यावरण को संतुलित रखते हुए अपना विकास करना चाहिए।