सत्ता का लालच:-
एक समय की बात है सुरेंद्र और नरेंद्र नाम के दो नेता रहते थे। सुरेंद्र बचपन से ही अमीर परिवार में पला था और उसे गरीबों के बारे में कुछ भी पता नहीं था। बल्कि नरेंद्र गरीब परिवार से था और हमेशा यह प्रयास करता था कि मैं कैसे गरीबी को दूर कर सकूं। उसके बाद सुरेंद्र ने पैसे के बल से एक बड़ी पार्टी में टिकट हासिल कर लिया और चुनाव में खड़ा हो गया। जब वोट आने वाला था तब वह घर-घर जाकर लोगों से वोट मांगता। कुछ दिनों बाद वोट का रिजल्ट आ गया। सुरेंद्र इस वोट में विजय हुआ। जैसे ही यह बात सुरेंद्र को पता चली उसके मन में घमंड आ गया कि उसके पास अब सत्ता की शक्ति है ।वह सिर्फ अपने फायदे के लिए सत्ता का उपयोग करता और गरीबों की ना सुनता। इस बात से नरेंद्र को काफी दुख होता था। वह हमेशा इसके लिए आवाज उठाता की सुरेंद्र को गरीबों की मदद करनी चाहिए। इसी तरह कुछ साल बीत गए नरेंद्र ने अपने व्यक्तित्व से लोगों का मन मोह लिया था। फिर से चुनाव का वक्त आया दोनों ही व्यक्ति इस बार चुनाव में खड़े हुए। परंतु इस बार सुरेंद्र नहीं नरेंद्र वोट में विजय हुआ। जब यह बात सुरेंद्र को पता चली तो उसने सोचा कि मैं नरेंद्र को लालच देकर अपनी पार्टी में ले आऊंगा और उसकी मदद से अपने सारे काम करवाऊंगी। जब यह बात सुरेंद्र ने नरेंद्र को बताई तो नरेंद्र बड़ी विनम्रता से कहा मैं जनता की सेवा किसी भी पार्टी में रहकर कर सकता हूं।यह आवश्यक नहीं है कि मैं तुम्हारी पार्टी में रहकर ही जनता की सेवा करूं। इसके बाद सुरेंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने प्रण लिया कि वह अपने सत्ता का दुरुपयोग कभी नहीं करेगा।
सीख:-हमें अपनी शक्तियों का कभी भी दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। उसका उपयोग हमेशा सहायता के लिए होना चाहिए।